मीसा बंदियों के सम्मान निधि बंद करना न्याय पूर्ण निर्णय नही



प्रदेश सरकार के खिलाफ लोकतंत्र सेनानी संघ ने दिया धरना
जबलपुर। प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा मीसा में निरुद्ध रहे लोकतंत्र सेनानियों की सम्मान निधि बंद किये जाने के तानाशाही निर्णय के विरोध में अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संघ ; मीसा बंदीद्ध जबलपुर संभाग द्वारा सिविक सेंटर मैदान में 5 घंटे का संभागीय स्तर का दिया गया। इसके पश्चात राज्यपाल महोदया के नाम जिला कलेक्टर के प्रतिनिधि को ज्ञापन दिया गया । इस अवसर पर सभी सदस्यों ने एक स्वर से मप्र सरकार द्वारी दिनांक 29.12.2018 के आदेश का बिरोध करते हुये मांग की कि मीसा बंदियों की दांत की समय सीमा तय करते हुये जांच के दौरान सम्मान राशि न रोकी जावे क्योकि मण् प्रण् विधान सभा से सर्वसम्मिति से विधेयक पास कर मानण्राज्यपाल की सहमति के हस्ताक्षर से जारी किया गया है । इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा 25 जून 1975 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद द्वारा उनके विरूद्ध श्री राजनारायण जी की याचिका को स्वीकार किए जाने के निर्णय से डरकर जल्दबाजी में भारत के संविधान के प्रावधानों का दुरूपयोग करते हुए आंतरिक आपातकाल की घोषणा की और भारत के सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं समाज सेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य संगठनों के सदस्यों को बिना किसी कारण और बिना सूचना और सुनवाई का अवसर दिए जिलों में निरूद्ध कर दिया थाए बाद में इस कार्यवाही को प्रचारित मीसा कानून के अंतर्गत शामिल कर लिया गया प्रेस की आजादी पर बंदिश लगी थी संगठन पर प्रतिबंध लगा कर लोकतंत्र की हत्या कर दी थी जिससे अनेक नागरिकों के कानूनी अधिकारी प्रभावित हुए थे और ना केवल जेल में निरूद्ध व्यक्ति बल्कि उसके परिवार के सामने रोजी.रोटी का संकट खडा हो जाता है यही सब इमरजेंसी में हुआ था अनेक बच्चों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी अनेक बच्चियों का विवाह स्थगित हो गया था इमरजेंसी के अत्याचारों की कहानी शाह आयोग ने दर्ज की हुई है।
वक्ताओं ने कहा मध्यप्रदेश की तरह ही भारत के अन्य 9 राज्यों में मीसाबंदी प्रणव को पेंशन दी जा रही है ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश में पेंशन कब बंद किया जाना समानता के सिद्धांत के विरूद्ध होकर मीसा बंदियों के मौलिक अधिकारों के हनन का मामला है जिस पर उच्च न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और उच्च न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 142 के तहत कार्यवाही करने का सीधा अधिकार भारत के संविधान ने दिया हुआ है उक्त कार्यवाही के पूर्व शासन को सूचना दी जाकर सचेत किया जाना आवश्यक है ताकि व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 80 प्रतिपादित व्यवस्था का पालन भी हो जाए मात्र विधानसभा के चुनाव के बाद सत्तारूढ़ दल का बदल जाना किसी वैद्य कार्यवाही को समाप्त करने या बंद करने का आधार नहीं होना चाहिए यह भारत के संविधान की आत्मा के विरूद्ध है। मीसा बंदियों ने बताया इमरजेंसी से तग आकर जनता ने सन 1977 में श्रीमती इंदिरा गांधी को सत्ता से हटा दिया था देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी परंतु मीसा बंदियों को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई जबकि अनेक मीसा बंदियों ने क्षतिपूर्ति के दावे भी किए थे कुछ दावे आज भी लंबित हैं।
मीसाबंदी नागरिकों और उनके परिवारों की स्थितियों को देखते हुए सन 2008 में मप्र शासन ने 20 एमजी को पेंशन और सम्मान निधि देने का निर्णय लेकर एक योजना बनाई बाद में कानून भी बनाया जिसके अनुसार मीसा बंदियों को मासिक पेंशन दी जा रही थी। मप्र में अभी हाल हुए सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ के मंत्रिमंडल ने मीसाबंदियों को दी जा रही पेंशन सम्मान निधि को पहले रोकने और बाद में बंद करने का निर्णय लिया है जिससे प्रदेश के सभी मित्र बंधु शुद्ध होकर यह ज्ञापन माननीय महोदय के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। मप्र शासन द्वारा की जा रही कार्यवाही नैसर्गिक न्याय सिद्धांतों के विरूद्ध होकर सूचना और सुनवाई का अवसर दिए बगैर हो रही हे जिससे भारत के संविधान में वर्णित जीवन जीने का अधिकार भी प्रभावित हो रहा है और मीसा बंदियों के सामने आर्थिक संकट खड़ा होने जा रहा है। जिससे उनकी रोटी की व्यवस्था भी प्रभावित होगी। कार्यक्रम का संचालन संभाग संयोजक अशोक सिघई ने किया। धरना को पूर्व मंत्री शरद जैन एअजय औरंगाबादकर प्रदेस मंञी छिंदवाडा ए जिलाध्यक्ष एडण्रमन पटैल जबलपुरए श्री सदर्शन बाझल अशोक श्रीवास्तव सिवनीए संतोष तिहैया नरसिंहपुर एडा वर्मा कटनीए के साथ राजेश उपाध्यायए डाण् सुभाष जैनए डाण्श्रीपाल डेवढियाए एम एल चौकेए याकूब खान एरियाज अहमदए गनपत बैसलेए दीनदयाल मोहनेएहरिशंकर राय एरशीद कुरेशीए एडण्शंभू उर्फ श्याम दास शर्माए दानी रूपचंद जैनए श्रीमति राजरानी वर्माए कृष्णा सोनीए श्रीमति शुक्ला कटनी ने संबोधित किया। इस दौरान बड़ी संख्या में मीसा बंदी उपस्थित थे।