जो इतिहास से सबक नहीं लेते वो खुद इतिहास बन जाते हैं



जो इतिहास से सबक नहीं लेते वो खुद इतिहास बन जाते हैं| मध्यप्रदेश में 15 सालों से सत्ता में आने के लिए बेचैन कांग्रेस पार्टी न जाने कौन सा इतिहास रचना चाह रही है| मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी किया | इसमें क्रमांक 47.62 में लिखा गया है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो शासकीय भूमि पर संघ की शाखा नहीं लगने देगी और सरकारी कर्मचारियों को संघ में जाने से रोका जाएगा| संघ से दुश्मनी कांग्रेस का घोषित शगल है| पंडित नेहरु के जमाने से कांग्रेस इस फेर में फंसी हुई है, बावजूद इसके कि, जनता की अदालत से लेकर न्यायालयों तक, उसने बार-बार मुंह की खाई है| उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद अदालतों के चक्कर (नेशनल हेराल्ड के अलावा) लगा रहे हैं| संघ के विरुद्ध राहुल गांधी द्वारा किए गए दुष्प्रचार का मामला न्यायालय में है| पर कांग्रेस है कि मानती नहीं|

नक्सली- जिहादी सब स्वीकार
कांग्रेस नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं। अक्टूबर 2018 में गृहमंत्रालय के पूर्व अधिकारी आरवीएस मणि ने कमलनाथ पर चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने बताया कि कैसे कमलनाथ उन पर और अन्य अफसरों पर दबाव डाल रहे थे कि लश्कर की आतंकी इशरत जहां को मासूम लड़की साबित कर दें ताकि इशरत के एनकाउंटर मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाया जा सके । जब मणि नहीं माने तो कमलनाथ उनसे बोले कि “लोग राहुल गांधी का पेशाब पीने के लिए तैयार हैं, तुम इतना छोटा सा फेवर(इनायत) नहीं कर सकते?” आरवीएस मणि ने कमलनाथ को जवाब दिया कि “सर ! आप लोगों को पेशाब का टेस्ट (स्वाद) पता होगा। मैं नहीं पीता। मैं सच के साथ खडा हूं।” मणि गृह मंत्रालय के तत्कालीन अंडर सेक्रेटरी थे। उनके अनुसार ठोस प्रमाण थे कि “इशरत जहां और उसके साथी आतंकी थे। ‘गजवा टाइम्स’ जिहादी संगठन जैश ए मुहम्मद का मुखपत्र है। उसने (इशरत के एनकाउंटर के) एक हफ्ते के अंदर छापा कि वो जैश की ‘शहीद’ थी। वो अपने आतंकी साथियों के साथ किन-किन शहरों में गई थी, किन होटलों में ठहरी थी, किन घरों में रुकी थी, कहां से हथियार लिए थे, ये सारी जानकारी हमारे पास थी। उसके साथी आतंकी जावेद मुहम्मद गुलाम शेख के पास दो पासपोर्ट थे। एक हिन्दू नाम से दूसरा मुस्लिम नाम से। आतंकी डेविड हेडली उर्फ़ दाउद सईद गिलानी से पूछताछ के आधार पर अमेरिका ने भी पुख्ता प्रमाण दिए।” जब मणि ने इस झूठ में साथ देने से इनकार कर दिया तो उन्हें एसआईटी के अफसरों द्वारा यातनाएं दीं गईं| जलती सिगरेटों से दागा गया। वो तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम की ओर भी इशारा करते हैं कि उनकी मर्ज़ी के बिना ये सब संभव नहीं था। मणि के अनुसार मोदी और अमित शाह इशरतजहां के निशाने पर थे|

रायपुर में राज बब्बर का नक्सलियों को क्रांतिकारी बतलाने वाला बयान (4 नवंबर 2018) भी कांग्रेस पार्टी ने सोच समझकर दिलवाया है। राजबब्बर के शब्द थे “आप बंदूकों से उन्हें डरा नहीं सकते, ये जो क्रांतिकारी (नक्सलवादी) निकले हुए हैं। ये मेरी राय है, और ये राय मैं अपनी पार्टी को दे भी चुका हूँ, और पहले भी ये राय दी गई है।”
छत्त्तीसगढ़ में भी चुनाव हो रहे हैं। सब जानते हैं कि यहां बस्तर, दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में नक्सली बंदूक के जोर पे मतदान को प्रभावित करते हैं। कांग्रेस ने इन्हीं नक्सलियों को अपने पाले में लाने की ये कोशिश की है। कुछ समय पहले सुरक्षा एजेंसियों के घेरे में आए अर्बन नक्सलियों के लिए भी कांग्रेस ने खूब आंसू बहाए थे।

षड़यंत्र पर षड़यंत्र
कांग्रेस को नक्सलवादियों से कोई दिक्कत नहीं। कांग्रेस को कट्टरपंथी संगठन जमात ए इस्लामी से कोई गुरेज़ नहीं। वो हिंदुओं के नरसंहार की बात करने वाले ओवैसी से गठजोड़ कर सकती है। वो मुस्लिम लीग के साथ सत्ता साझा कर सकती है, लेकिन गैर राजनैतिक – सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उसे नफरत है। संघ पर कीचड़ उछालना हो तो कांग्रेस को कसाब से भी परहेज नहीं। जी हां। संघ विरोध में कांग्रेस कितनी अंधी हो सकती है इसकी बानगी है एक किताब और उसमें कांग्रेस की भूमिका। मुंबई पर हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान को क्लीनचिट देते हुए एक किताब लिखी गई थी। शीर्षक था “26/11: आरएसएस की साज़िश”। इस किताब का सार था कि मुंबई पर हुआ दुर्दांत आतंकी हमला पाकिस्तान से आए हुए आतंकियों ने नहीं बल्कि भारत के ही गुप्तचर तंत्र, सैन्य अधिकारियों ने आरएसएस के साथ मिलकर किया था| किताब के लेखक थे वरिष्ठ पत्रकार अज़ीज़ बर्नी| इस किताब की 25 हजार प्रतियां हिंदी में और इतनी ही अंग्रेजी में छापी गईं थीं। इस किताब का विमोचन करने गए थे कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह। यानी, संघ विरोध के लिए देश की सुरक्षा एजेंसियों को ही आतंकी ठहराने से बाज़ नहीं आये| संघ के एक कार्यकर्ता विनय जोशी ने इस किताब पर कानूनी कार्यवाही शुरू की और देशद्रोह का मामला बनने लगा तो किताब वापिस ले ली गई| बर्नी ने भी क्षमा मांग ली| बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने बर्नी को इस हरकत के लिए अपने ढंग से पुरस्कृत किया|

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी संघ पर अनर्गल आरोप लगाकर कानूनी कार्यवाही का सामना कर रहे हैं, मामला फिलहाल अदालत में है| न्यायालय ने इस आधार पर मुकदमा चलाने का निर्णय लिया कि जब गांधी ह्त्या के मामले में न्यायालय ने संघ को निर्दोष करार दिया, सारी जांच स्वयं सरदार पटेल की देखरेख-निगरानी में चली, कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए जांच आयोगों ने संघ पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बतलाया, तो फिर राहुल गांधी संघ पर ये आरोप कैसे लगा सकते हैं?

मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जिहादी आतंकी संगठन सिमी की गतिविधियां परवान चढ़ीं। साल 2016 में सिमी के 8 एक पुलिस कांस्टेबल की ह्त्या कर भोपाल की सेंट्रल जेल से भागे। जब इन भगोड़े आतंकियों का पुलिस ने एनकाउंटर किया तो मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पुलिस को ही निशाने पर लिया और बयान दिया कि “केवल मुस्लिम कैदी ही जेल से क्यों भागते हैं हिन्दू क्यों नहीं?” इस तरह पूरे मामले को एक नया मोड़ देने में दिग्विजय सिंह लग गए। दिग्विजय सिंह को सिमी आतंकियों द्वारा बेरहमी से क़त्ल किये गए मध्यप्रदेश पुलिस के रमाशंकर यादव से हमदर्दी नहीं थी| वो बजरंग दल को सिमी के समकक्ष बतलाने लगे और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे| सारे देश में हजारों सरस्वती शिशु मंदिरों में लाखों बच्चे पढ़ रहे हैं| फ़रवरी 2017 में दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया कि मदरसों और शिशु मंदिरों में कोई फर्क नहीं है। ऐसे ही नीमच में जुलाई 2013 में दिग्विजय सिंह ने बयान दिया कि शिशु मंदिरों में बम बनाना सिखाया जाता है।

अदालत की चौखट पर बार-बार पटखनी –
सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने बार-बार संघ के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया| दो-दो बार प्रतिबंध लगाकर हजारों स्वयंसेवकों को जेलों में यातनाएं दीं| पर हर बार प्रतिबंध हटाना पड़ा। फिर उसने संघ में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर निशाना साधा, लेकिन न्यायालय ने हर बार उसे बैरंग लौटाया| इसके कुछ उदाहरण देखें –

1. इंदौर स्थित मध्य भारत उच्च न्यायालय (1955): ‘कृष्ण लाल बनाम मध्य भारत राज्य ’ –
फैसला – “किसी भी अस्थायी सरकारी कर्मचारी को यह कह कर सेवा से हटाया नहीं जा सकता की वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य है।”
2. पटना उच्च न्यायालय (1961): ‘मा. स. गोलवलकर बनाम बिहार राज्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समारोह पर दिया गया भाषण भारतीय दंड संहिता की धारा 153क के अधीन अपराध नहीं है।”
3. बम्बई उच्च न्यायालय नागपुर न्यायपीठ (1962): ‘चिंतामणि नुरगांवकर बनाम पोस्ट मास्टर जनरल कें.म. , नागपुर ’ –
फैसला – “किसी सरकारी कर्मचारी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेना ‘विध्वंसक कार्य’ नहीं है तथा उसे इस आधार पर सरकारी सेवा से हटाया नहीं जा सकता। ”
4. उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय (1963): ‘जयकिशन महरोत्रा बनाम महालेखाकार, उत्तर प्रदेश’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मात्र सदस्य होने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी को अनिवार्य रूप से सेवा-निवृत्त नहीं किया जा सकता।”
5. जोधपुर स्थित राजस्थान उच्च न्यायालय (1964): ‘केदारलाल अग्रवाल बनाम राजस्थान राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भाग लेने के आधार पर सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी न टिक सकने वाली है।”
6. दिल्ली स्थित पंजाब उच्च न्यायालय (1965): ‘मनोहर अम्बोकर बनाम भारत संघ तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकलाप में भाग लेना न तो ‘विध्वंसक कार्य’ ही कहा जा सकता है और न ही गैर कानूनी है | सरकारी कर्मचारी को इस आधार पर दण्डित नहीं किया जा सकता ।”
7. बेंगलूर स्थित मैसूर उच्च न्यायालय (1966): ‘रंगनाथाचार अग्निहोत्री बनाम मैसूर राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य होना न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से वंचित रखने के लिए वैध कारण नहीं है।”
8. चंडीगढ़ स्थित पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (1967): ‘रामफल बनाम पंजाब राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में भाग लेने के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता ।”
9. जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (1973): ‘भारत प्रसाद त्रिपाठी बनाम मध्यप्रदेश सरकार तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी कार्यक्रम में भाग लेने के आधार पर किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती | किसी अन्तरस्थ हेतु से जारी किया गया (इस आशय का) कोई आदेश वैध नहीं ठहराया जा सकता।”
10. उत्तरप्रदेश उच्च न्यायालय (1971) : ‘शिक्षा निदेशक, उत्तर प्रदेश तथा अन्य बनाम रेवत प्रकाश पांडे’ –
फैसला – “सरकारी सेवा के दौरान किसी नागरिक का ‘संगम का अधिकार’ निलंबित नहीं हो जाता ।”
11. गुजरात उच्च न्यायालय, अहमदाबाद (1970) : ‘डी. बी. गोहल बनाम जिला न्यायाधीश, भावनगर तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्बन्ध में यह सिद्ध नहीं है की वह एक राजनैतिक आन्दोलन है, अतः (इस आधार पर) सरकारी कर्मचारी को सेवा से हटाया नहीं जा सकता | ”
12.अर्नाकुलम स्थित केरल उच्च न्यायालय (1981): ‘टी. बी. आनंदन तथा अन्य बनाम केरल राज्य तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को किसी सरकारी विद्यालय के भवन का उपयोग अपने कार्यक्रमों के लिए करने की विशेष सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता। ”
13. अर्नाकुलम स्थित केरल उच्च न्यायालय (1982) : ‘श्रीमती थाट्टुम्कर बनाम महाप्रबंधक, टेलिकम्युनिकेशंस, केरल मंडल ’ –
फैसला – “किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य होने के आधार पर सरकारी नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। ”
14.भारतीय उच्च न्यायालय (1983) : ‘मध्यप्रदेश राज्य बनाम राम शंकर रघुवंशी तथा अन्य ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने के आधार पर किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। ”
15. अवैध गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (1993) : ‘केंद्रीय सरकार बनाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ’ –
फैसला – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैर-कानूनी घोषित करने के लिए कारण पर्याप्त नहीं हैं। ”
कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर जब चारों ओर प्रतिक्रिया शुरू हुई तो कांग्रेस के नेता अपने घोषणापत्र की वकालत करते हुए मैदान में कूद पड़े। ज़ाहिर है कि वो अतीत से सबक सीखना नहीं चाहते और न ही जनभावनाओं का आदर करना जानते हैं। कभी विदेशियों के सामने तथाकथित ‘हिन्दू आतंकवाद” का हौआ खडा कर चुके उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अब खुद को आस्थावान हिन्दू साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, और दूसरी तरफ हिंदू संगठनों के प्रति अपनी नफरत को छिपा भी नहीं पा रहे हैं।

-प्रशांत बाजपेई