प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई और उद्यानिकी विकास योजनाओं से किसान हुए समृद्ध


भोपाल। मध्यप्रदेश में कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और उद्यानिकी विकास योजना काफी मददगार साबित हो रही है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से सकल सिंचित क्षेत्र में वृद्धि परिलक्षित हुई है। साथ ही खेतों में पैदावार में दोगुना तक वृद्धि हुई है। उद्यानिकी विकास योजना से किसानों को परम्परागत खेती के साथ-साथ सब्जियों और फूलों की खेती कर अतिरिक्त आमदनी का नया जरिया मिल गया है।

दमोह जिले के पिपरिया जुगराज गाँव के किसान बिहारी सिंह, रघुवीर सिंह और विनोद सिंह के खेतों में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में तैयार मिट्टी बंधान बाँध से कृषि उत्पादन में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है। गाँव में 15 लाख रुपये की लागत से बने इस डेम से किसानों के खेतों को सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी मिलने लगा है। मवेशियों को भी पर्याप्त पानी मिल रहा है। किसान बिहारी सिंह के खेत में पहले 5 क्विंटल धान ही बमुश्किल हो पाती थी। बांध बनने के बाद धान की पैदावार 10 क्विंटल तक पहुँच गयी है। गाँव में हैण्डपंपों का वॉटर लेवल भी बढ़ गया है। किसान विनोद सिंह बताते हैं कि बाँध की ऊँचाई और बढ़ा दी जाये, तो ज्यादा समय तक पानी बना रहेगा। योजना से जुड़े परियोजना अधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में छोटा-सा पहाड़ी नाला था, जिसका कैचमेंट एरिया मात्र 4 किलोमीटर ही हुआ करता था। यहाँ बाँध बनाने में अब तक 12 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बाँध की देखरेख के लिए वॉटर शेड कमेटी भी बनाई गई है। अब यहाँ के किसान खेती को लाभकारी मानने लगे हैं। रीवा जिले के ग्राम रौसर के किसान रामगोपाल अपने खेत में सब्जी और फूलों की खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें वर्ष भर करीब 3 लाख रुपये से भी अधिक अतिरिक्त आमदनी हो रही है। रामगोपाल का परिवार वर्षों से परम्परागत फसल लेता रहा है। इस कारण खेती में उनकी आमदनी सीमित होकर रह गयी थी। उन्होंने जब उद्यानिकी विभाग के मैदानी अमले से इस बारे में चर्चा की, तो उन्हें सब्जियों की पैदावार की जानकारी मिली। उन्होंने सब्जियों के साथ फूलों की खेती करना भी शुरू किया। किसान रामगोपाल को अब उनके खेतों में होने वाली सब्जी और फूल के रीवा के बाजारों में अच्छे दाम मिल जाते हैं। उनकी वार्षिक आमदनी में भी अच्छा-खासी बढ़ोत्तरी हुई है। रामगोपाल अब क्षेत्र के अन्य किसानों को भी परम्परागत फसलों के साथ-साथ उद्यानिकी फसल लेने की सलाह देते हैं।