सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं, अब राज्‍यों पर छोड़ा फैसला


SC/ST कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है इस मामले में पुनर्विचार की कोई जरूरत नहीं है। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 30 अगस्त को सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले में कोर्ट को यह तय करना है कि 12 साल पुराने एम नागराज मामले में अदालत के फैसले की समीक्षा की जरूरत है या नहीं। SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि 2006 में नागराज मामले में दिए गए उस फैसले को सात सदस्यों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है जिसमें अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की यह अर्जी भी खारिज कर दी कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण का मसला राज्यों पर छोड़ा दिया और कहा कि राज्य चाहें तो आरक्षण दे सकते हैं. इसके लिए आरक्षण से पहले आंकड़े दिखाने होंगे..

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ने कहा था कि एससी/एसटी सरकारी कर्मचारी प्रमोशन में आरक्षण के खुद हकदार हैं. केंद्र ने कहा कि एससी-एसटी पहले से ही पिछड़े हैं इसलिए प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जब एक बार एससी/एसटी के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो प्रमोशन में आरक्षण के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है? केंद्र सरकार का कहना है कि एम नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है. गौरतलब है कि 2006 के नागराज फैसले के बाद एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया था..

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि एससी-एसटी के लिए पिछड़ापन निर्धारित करने के लिए डेटा का संग्रह न तो व्यवहारिक है और न ही उसकी जरूरत है. केंद्र ने लिखित जवाब दाखिल करते हुए कहा कि संसद द्वारा बिल पास करने के बाद ही एक समुदाय को एससी कैटिगरी की सूची में शामिल कर लिया गया था. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 2006 के नागराज फैसले के मुताबिक सरकार एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण तभी दे सकती है जब डेटा के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और वो प्रशासन की मजबूती के लिए जरूरी है. हालांकि 1992 के इंदिरा साहनी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 2005 के ई वी चिन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश में इस बाबत फैसले दिए गए थे. ये दोनों फैसले ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर से जुड़े थे. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 2006 के नागराज फैसले से एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है. केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से प्रताड़ित है. उन्होंने कहा था कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा की जरूरत है|