किसान किसी भी स्तर पर बिचोलिया व्यवस्था नहीं चाहता – ज्योतिरादित्य सिंधिया

देश में किसान हित को अनदेखा कर ना तो विकास किया जा सकता है ना ही विकास की कल्पना। किसान और उसकी आमदनी को लेकर बातें खूब होती हैं लेकिन ठोस पहल पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही की है। देश को दशकों के बाद एक ऐसा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के रूप में मिला जिसने हर वर्ग की तकलीफ को करीब से देखा है। किसानों की समस्यओं को बहुत करीब से देखा है। किसान हित में फैसला लेना आसान नहीं होता। किसान की जो राजनीतिक और बाजार की समझ है,वह बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी नहीं होती है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि किसान भारत के विकास की रीढ़ की हड्डी है। हमारा अन्नदात हैं। उस पर पूरी मानवता के पोषण की जिम्मेदारी है। उसमें हम कुपोषित कैसे रख सकते हैं।? इसी सोच के साथ केन्द्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आयी है।  भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सोच किसानों को उनकी उपज का बाजिव मूल्य दिलाने की है। सत्तर साल से किसान जिन बेड़ियों में जकड़ा गया है, उन बेड़ियों को तोड़ कर उसे विकास और प्रगति के रास्ते पर प्रशस्त करने की है। किसानों की आय दुगनी करने का संकल्प प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन का है। किसान देश में अपना उत्पादन कही भी बेच पाये, एक ही जगह तक वह किसान सीमित न हो, इसलिए ये कानून लाये गये। किसान इस सच्चाई को जानता है। किसान के अहित से किसका भला होने वाला है। यह सोचने की बात है। सरकार लगातार संवाद की कोशिश कर रही है। लेकिन, कुछ लोग अपनी राजनीति के लिए किसान को एक ऐसे अंधे मोड़ पर ले जाना चाहते हैं,जहां रोशनी नहीं है। सरकार की सोच समाधनकारी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी समस्या पैदा करने की राजनीति नहीं करते। यह पिछले कई फैसलों में सामने आ गया है। आमजन का भरोसा सरकार पर बढ़ा है।

आश्चर्य है कि जिन लोगो ने ऐसे कानून की वकालत की थी, आज वे विरोध कर रहे हैं। कांगे्रस पार्टी शायद यह भूल गई कि उसने वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में क्या वादा किया था। डॉ.मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व वाली सरकार के कृषि मंत्री के रूप में शरद पवार ने जो पत्र राज्य के मुख्यमंत्रियों वर्ष 2011 में लिखा था,उसे वे कैसे भूल गए? भारतीय जनता पार्टी जो कहती है,उसे याद भी रखती है। हमें जुबान बदलने की आदत बंद करनी होगी। चित भी मेरी पट भी मेरी यह कब तक चलेगा ? जो  कहा था, उस पर आप अडिग रहेंगे तो आपका भी मान -सम्मान बढेगा। आश्चर्य तो तब होता है जब यह कहा जाता है कि नए कानून की मांग किसने की थी,किसानों से पहले पूछा क्यों नहीं? यह तथ्य किसी से छुपा हुआ नहीं है कि किसान को सबसे ज्यादा नुकसान बिचोलियो ने पुहंचाया। सरकार बिचोलियों का सिस्टम खत्म कर रही है,तो तकलीफ हो रही है। जो किसान इस सच को सम­ा गया है,वह आंदोलन से दूरी बनाए हुए है। देश के ज्यादतर राज्यों में किसान नए कानून से खुश है। उसमें आत्म विश्वास का संचार हुआ है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने जो कहा वो किया। इसके एक नहीं अनेक प्रमाण हैं। न्सूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना की वृद्धि,मामूली काम नहीं है। पांच साल में दो गुना से ज्यादा की वृद्धि की गई। पचहत्तर हजार करोड़ों रूपए से ज्यादा भुगतान किया गया। किसान सम्मान निधि के बारे में कोई सोच नहीं सकता था। सम्मान निधि से किसान को आर्थिंक संबल मिला है। फसल बीमा ने उसकी चिंता घटाई है। नब्बे हजार करोड़ रूपए से अधिक की राशि फसल बीमा के मुआवजे के तौर भुगतान की गई है। देश में छियासी प्रतिशत छोटे व सीमांत किसान हैं।, वे तभी मनाफे में आ सकते जब फसल का प्रतिस्पर्धी दाम मिले। नई तकनीकी से जुड़े। एमएसपी को लेकर सरकार का नजरिया स्पष्ट है।  26 जनवरी को दिल्ली के लाल किले पर जो हुआ,वह किसी किसान का काम नहीं हो सकता। किसान की सोच में ही तोड़फोड़ नहीं है। वह सृजन जानता है। वह जानता है कि निर्माण कितना मुश्किल होता है। संरक्षण कितना जरूरी होता है। जवान और किसान को अलग-अलग देखा ही नहीं जा सकता। गणतंत्र दिवस पर 394 पुलिसकर्मी घायल हुए। भरोसा नहीं होता कि यह काम किसानों का है। घटना के पीछे जो चेहरे हैं,वे छुपे हुए नहीं है। देश की एकता को कमजोर करने का जो कुचक्र चल रहा है,वह सामने आ चुका है।