जीवन चक्र में शाश्वत प्राकृतिक सिद्धांत है कि जो आप दोगे वही वापस आएगा – पंकज चतुर्वेदी

जीवन चक्र – पंकज चतुर्वेदी
लेखक मोटिवेशनल स्पीकर है

जिस प्रकार हमारी पृथ्वी गोल है और एक धुरी पर सतत रूप से घूमती है, यह इसका चक्र है। ऐसा ही सब कुछ हमारे जीवन चक्र में भी है जीवन चक्र में शाश्वत प्राकृतिक सिद्धांत है कि जो आप दोगे वही वापस आएगा कांटो के वृक्ष लगाने पर कभी भी पुष्प नहीं मिल पाएंगे। यह सिद्धांत है तो बहुत साधारण लेकिन सब लोग इस साधारण से सिद्धांत को साधारण ही मानते हैं और इसीलिए जीवन में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने से कई बार चूक जाते हैं। भारतीय संस्कृति में तो इस बात का विशेष महत्व है कि यदि भला करोगे तो ही लाभ होगा। भला को यदि उल्टा उच्चारित किया जाए तो स्वता लाभ ही उच्चारित होगा। जैसी करनी- वैसी भरनी, यह हमारा पुराना नियम है । यह नियम है तो बहुत प्राचीन किंतु हर नवीन परिस्थिति में भी यह प्रासंगिक और स्थाई है। किंतु उसके बाद भी अधिकांश लोग इस विषय में भूल कर बैठते हैं ।सफलता की सिद्धि की सबसे बड़ी साधना ही सबका हित और भला सोचना है। यह इतनी आसान सिद्धि है , संभवत दुनिया में सबसे सरल। फिर भी इस पर अमल कठिन सिर्फ इसलिए है कि हम बतौर मानव कुछ अधिक स्वार्थी हो गए हैं। सब के शुभ के स्थान के स्थान पर, स्वहित के विषय अधिक हावी है। इसलिए स्वयं का शुभ प्राप्त होने में विलंब हो रहा है।
जिस प्रकार किसी भी वस्तु को यदि संतुलित करना है तो उसको उसके केंद्र से पकड़कर संतुलित करना पड़ेगा अन्यथा सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाएगा। वैसे ही हमारे जीवन का केंद्र भी लोगों का भला करना है ।हमने अपना जीवन यदि इस केंद्र से संतुलन किया, तो सब कुछ संतुलित होगा न केवल अपने लिए बल्कि अन्य सब के लिए भी। हम में से किसी को भी पृथ्वी के गोल घूमने का अनुभव नहीं होता किंतु वास्तविकता यह है कि पृथ्वी गोल घूम रही है । वैसे ही सद कार्यो के सद परिणाम भी है। हम लोग अनुभव नहीं करते किंतु वास्तविकता यही है कि सदैव सद कार्यों के सद परिणाम ही प्राप्त होते हैं। इसके लिए शीघ्र ही अभ्यास प्रारंभ करना पड़ेगा कि हम किसी के लिए भी बुरा ना सोचें। यदि हम किसी के लिए बुरा सोचेंगे तो सबसे पहला नुकसान तो यह है कि हमको अंदरूनी शारीरिक क्षति होगी। क्योंकि यदि बुरा सोचेंगे, तो उन विचारों के अनुरूप हमारे शरीर के भीतर नकारात्मक रासायनिक क्रिया – प्रतिक्रियाएं विज्ञान के अनुरूप होती ही हैं जो हमको शारीरिक रूप से हानि पहुंचाएंगे अतः किसी के लिए भी कभी बुरा मत सोचो।सबके लिए अच्छा सोचो। सबके लिए अच्छा सोचने की शुरुआत करना है ,तो सबसे श्रेष्ठ उपाय है कि स्वयं के प्रति अच्छा सोचो ।स्वयं के प्रति कभी भी शोषित पीड़ित का भाव मत रखो। जितना अच्छा आप स्वयं के प्रति सोच सकते हैं उतना ही आपको आसानी होगी कि आप अन्य लोगों के प्रति भी अच्छा सोच सकें। आप जब अच्छा सोचेंगे तो अच्छा होगा भी और अच्छा करेंगे भी। जब अच्छा करेंगे तो अच्छा ही वापस आएगा। अच्छाई और बूमरैंग की भांति हैं। यह एक ऑस्ट्रेलियाई खेल है जिसमें आप जो फेंकते हैं वही तीव्र गति से आपके पास वापस आता है। यही हमारे जीवन चक्र में भी होता है। हम जितनी गति से अच्छा करेंगे उस से अधिक तीव्रता से अच्छा वापस आएगा। और बुरा करेंगे तो वही वापस आएगा।
अक्सर एक प्रश्न आता है कि हमने कुछ भी बुरा नहीं किया फिर भी हमारे जीवन में समस्याएं और बाधाएं क्यों? इसका स्पष्ट कारण है कि हम व्यक्तिगत तौर पर तो शायद किसी का अहित नहीं कर रहे या नहीं कर पा रहे। किंतु वैचारिक तौर पर हम किसी के प्रति सद्विचार नहीं रखते। और वैचारिक क्रोध और हिंसा भी हमारी संस्कृति में तो हिंसा मानी गई है। वाचिक मानसिक और कायिक तीनों प्रकार की क्रियाओं पर हमको ध्यान देना पड़ेगा। हमारे यहां कहा जाता है कि वाणी के मौन या काया के शांत रखने से मौन नहीं होता। वैचारिक शुद्धता और शांति से वास्तविक मौन होता है। विचारों के स्तर पर ही सबसे अधिक काम करने की आवश्यकता है। क्योंकि विचार जितने सकारात्मक, सहयोगात्मक और दूसरों के प्रति सद्भावना से परिपूर्ण होंगे उतना ही आसान जीवन है। हम जीवन में जो भी कुछ करते हैं वह हमें कई गुना अधिक होकर मिलता है। जैसे जैसे फल ,सब्जी ,अनाज। थोड़े से बीज डालेंगे पर उन्हीं बीजों के अनुरूप ढेर सारी उपज उत्पन्न होगी ।
अब आप कौन से बीज डाल रहे हैं उस आधार पर आपके जीवन में सफलता उपजेगी। प्रकृति का भी अपना हिसाब किताब तय करने का नियम है कि जब जीवन में हमको बहुत सख्त आवश्यकता होगी तब ही हमारे अच्छे और बुरे कर्मों के अनुरूप हमको सहायता और परिणाम मिलेंगे।

यही प्राकृतिक सिद्धांत है। इसीलिए परहित को सबसे