किसानों का मुखौटा लगाकर देश तोड़ने की साजिश – रमेश शर्मा

भारत सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों को लेकर देश में आँदोलन का बाजार गर्म है । इस आँदोलन में बात तो किसानों की है, चेहरा भी किसानों का है पर इस आँदोलन का सत्य केवल किसान नहीं हैं । किसानों का केवल नाम है लगता है इसके पीछे कुछ ऐसे तत्व और ताकतें हो गयीं हैं जिनका उद्देश्य भारत को कमजोर करना है और कमजोर करके राष्ट्र और समाज के ताने बाने को बिखेरना है । हो सकता है आँदोलन का आरंभ किसानों ने ही किया हो लेकिन अब लगता है आँदोलन संचालित करने के सूत्र किसानों के हाथ से निकल गये लगते हैं । यह आँदोलन अब पूरी तरह देश विरोधी षडयंत्र की दिशा में मुड़ गया है । आँदोलन के बहाने देश विरोधी षडयंत्र के प्रमाण गणतंत्र दिवस के बाद से लगातार मिल रहे हैं, एक के बाद एक रोज नये खुलासे हो रहे हैं । सबसे पहले तो वे कुछ वामपंथी चेहरे दिखे जो चीन में अपनी आत्मा का वास देखते हैं, फिर खालिस्तानी चेहरे दिखे । इन चेहरों में कुछ ऐसे भी थे जो श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या का षडयंत्र रचने वाले भिण्डरावाले को अपना आदर्श मानते हैं, गणतंत्र दिवस पर किसानों के नाम पर जो ट्रेक्टर परेड निकाली गई उस ट्रेक्टर परेड में शामिल एक ट्रेक्टर पर भिण्डरावाले की तस्वीर लगी थी । जो टेलीविज़न चैनलों पर दुनियाँ भर को दिखाई दी । गणतंत्र दिवस पर क्या घटा, लाल किले पर क्या हुआ यह भी पूरे देश ने देखा । फिर कनाडा, अमेरिका आदि कुछ देशों में इस कथित आँदोलन के समर्थन में जुलूस निकलने और चंदा होंने की खबरें भी आईं । अभी इन सब की सच्चाई का अन्वेषण हो ही रहाथा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नयी ट्यूटर मुहिम सामने आयी जिसे कुछ नामी गिरामी ब्रांडेड चेहरे जुड़े हैं और भारत में किसान आँदोलन पर समर्थन का आव्हान कर रहे हैं । भला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म जगत की रिहाना, पर्यावरण के लिये काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग और पोर्न स्टार मिया खलीफा का भारत के कृषि कानून से क्या संबंध हो सकता है ? यह समझना किसी को मुश्किल नहीं । जिस तरह खालिस्तानी तत्वो का के सूत्र पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े हैं ठीक उसी तरह इन सितारों के संबंध अंतर्राष्ट्रीय बाजार से जुड़े हैं । इनका इस्तेमाल बाजार करता है और जन सामान्य को प्रभावित कर अपनी जड़ो को मजबूत करता है।
अब प्रश्न यह है कि इन दोनों को ही इस आँदोलन से जुड़ने की जरूरत क्यों पड़ी । इसके उत्तर में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आँदोलन इन्ही की योजना से आरंभ हुआ हो । सबसे पहला तो विचारणीय यही है कि आँदोलन किस समय आरंभ हुआ । देश के बाहर सीमा पर चीन का तनाव बढ़ा और देश के भीतर कोरोना वैक्सीन का अभियान शुरू होना था अर्थात देश के शासन प्रशासन और समाज सबको इन दोनों दिशाओं में एकाग्र होने का समय था तब आँदोलन खड़ा हुआ ।सबका ध्यान सीमा से कम हुआ, कोरोना वैक्सीन से कम हुआ । इस संभावना या आशंका की पुष्टि सोशल मीडिया के “टूलकिट” होती है । यह एक ऐसा अत्याधुनिक प्रचार और संदेश प्रवर्तक प्लेटफॉर्म है जिससे रातोरात संदेश पूरे संसार में फैलता है और सभी संबंधित लोग उस आधार पर सक्रिय हो जाते है । भारत सरकार ने टूलकिट का एक फार्वर्ड पकड़ा है जिसमें जो विवरण है या योजना है दिल्ली में वही सब घटा है । यही नहीं ऐसे कोई तीन सौ ऐसे ट्यूटर और सोशल मीडिया एकाउंट भी नजर आये जो इस तथाकथित किसान आँदोलन को उकसाने और उग्र बनाने का काम कर रहे थे । इसके साथ भारत सरकार के खुफिया विभाग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचालित होने वाले दस खालिस्तानी एकाउंट का नेटवर्क भी मिला जिसमें इस आँदोलन के लिये अलग-अलग दिशा निर्देश दिये जा रहे थे । किसी एकाउंट में फंड की व्यवस्था का मार्ग था तो किसी में लोगों को उकसाने की सामग्री भरी पड़ी थी । कुछ में ऐसी भावनात्मक अफवाहों की पंक्तियाँ थीं जिससे लोगों भड़काया जा सके । तो किसी एकाउंट में आँदोलन की पूरी कार्य शैली समझाई जा रही थी । इन एकाउंट में जो सूत्र दर्शाये जा रहे थे दिल्ली का ताजा घटनाक्रम उसी क्रम से सामने आया । इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बार भारत में इस अशांति फैलाने के लिये साजिश कर्ताओं ने यूरोप को केन्द्र बनाया हो । चूंकि इसकी समान प्रतिक्रिया अमेरिका, कनाडा, इंग्लेंड, फ्रांस और अन्य देशों में देखीं गयीं जबकि चीन और पाकिस्तान में अपेक्षा कृत सन्नाटा रहा । जबकि भारत में अशांति होने का सीधा हित चीन और पाकिस्तान से जुड़ा है । इसका कारण भी है । यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि आज के अंतर्राष्ट्रीय बाजार के अधिकांश सूत्र चीन के हाथ में हैं इन्ही के सहारे चीनी कंपनियों और उनके उत्पाद ने पूरी दुनियाँ के बाजार पर कब्जा कर रखा है । भारत ही नहीं अमेरिका के बाजार भी चीनी सामग्री से पटे पड़े हैं । अंतर्राष्ट्रीय बाजार के जिन तीन नामचीन चेहरों ने इस आँदोलन को अंतर्राष्ट्रीय हवा देने की कोशिश की है उनके चीनी कंपनियों से कनैक्शन भी स्पष्ट हैं । दूसरी ओर खालिस्तानी तत्व । इन तत्वों को पाकिस्तान संचालित कर रहा है । लेकिन सीधे अपने यहां से नहीं । जो खबरें आतीं हैं उनके अनुसार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस फोर्स को 1971 के युद्ध में पराजय के बाद खड़ा किया था । इसके लिये कनाडा में कुछ सिक्ख परिवारों को भ्रमित कर फंडिग की थी । उसी फंडिग से यह आँदोलन आगे बढ़ा । यदि हम अतीत पर नजर डालें तो अस्सी के दशक में पंजाब के आतंकवाद में अनेक युवक ऐसे युवक पकड़े गये थे जो सिक्ख वेष में तो थे पर पाकिस्तानी मूल के पंजाबी थे जो बोली और कद काठी से सिखों में घुल मिल गये थे । जिनसे तब इस आँदोलन को हवा मिली थी । इस बार भी इस आँदोलन में कनाडा कनेक्शन बार बार सामने आ रहा है भारत के मामलों में पाकिस्तान और चीन सदैव एक थाली में खाना खाते हैं, यह तथ्य भी सब जानते हैं । पाकिस्तानी आतंकवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन से ही संरक्षण मिलता रहा है । इन दिनों पाकिस्तान और चीन दोनों भारत से बौखलाये हुये हैं । भारत द्वारा आतंकवाद पर किये गये नियंत्रण, दो तीन सर्जिकल स्ट्राइक, कश्मीर की धारा 370 को समाप्त करने आदि से जहाँ पाकिस्तान बौखलाया है वहीं आत्म निर्भर भारत के संकल्प और लोकल पर वोकल होने के नारे चीन की त्योरियां चढ़ी । चीन को लगता है कि यदि भारत आत्म निर्भर हो गया अपनी स्थानीय वस्तुओं पर गर्व करके उपयोग करने लगा तब उसके उत्पाद को कौन पूछेगा । चीनी उत्पाद का सबसे बड़ा बाजार भारत है । चीन का मतलब तभी सिद्ध होगा जब भारत अशांत रहे और आत्म निर्भर न बने वहीं पाकिस्तान का हित तब है जब भारत में सामाजिक विद्वेष बढ़े । किसान आँदोलन के बैनर पर यह ताजा अभियान इन तीनों दिशाओं में मार कर रहा है देश को अशांत बनाने में, आत्म निर्भरता अभियान की गति को अवरुद्ध करने में और सामाजिक विद्वेष फैलाने में भी । चीन और पाकिस्तान दोनों को लगा कि भारत में विकास की गति तभी रुकेगी तब आंतरिक अशांति होगी । इतिहास गवाह है कि भारत को जब भी क्षति हुई आतंरिक अशांति से ही हुई । हर विदेशी आक्रांता ने पहले भारत को अशांत किया,पहले एक भारतीय को दूसरे के विरुद्ध खड़ा किया फिर आक्रमण किया । तभी सफल हो पाया । ऐसा हर दौर में हुआ । सिकन्दर के समय भी हुआ और शकों के समय भी, मोहम्मद बिन कासिम के समय भी हुआ और मेहमूद गजनवी के समय भी, मोहम्मद गौरी के समय भी हुआ और बाबर के समय भी । डचों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के समय भी यही इतिहास दोहराया गया । अब यही फार्मूला फिर सामने है।
चीन और पाकिस्तान दोनों ने सीमा पर खुराफात करके देख ली । अब भारत 1947 या 1962 का भारत नहीं है । यह 2021 का भारत है । भारत ने हर बार मुँह तोड़ उत्तर दिया है । दोनों को सीधे सफलता नहीं मिली तब आंतरिक मामलों में अशांति का षडयंत्र कर रहे हैं । किसानों के नाम पर भारत को अशांत करने के षडयंत्र उन्ही की रणनीति का हिस्सा है।
यह देश को अशांत करने का षडयंत्र है इस धारणा को बल इसलिये भी मिलता है कि भ्रम और अफवाहों के आधार पर देश को अशांत करने का यह पहला प्रयोग नहीं है । ऐसा बार बार हुआ है । एक प्रयोग जेएनयू में भी हुआ था । प्रश्न उन चेहरों और नारों का नहीं जो जेएनयू में लगाये गये थे जिनमें देश के टुकड़े होने या आतंकवादी अफजल की मौत पर शर्मिंदा होने का उद्घोष हुआ था, प्रश्न उस तकनीकी का है जिसके द्वारा वह जमघट लगा था और उसका प्रचार किया गया था । तब भी ट्यूटर और सोशल मीडिया एकाउंट का ही भारी उपयोग हुआ था । भारत में भी और भारत के बाहर भी। इसका अगला चरण शाहीन बाग धरने में देखा गया । शाहीन बाग का धरना भी केवल भ्रम फैलाकर ही आयोजित किया गया था उसमें भी ट्यूटर और सोशल मीडिया एकाउंट का भारी उपयोग था। दिल्ली के ताजा घटना क्रम में जो तीन सौ एकाउंट नजर में आये हैं उनमें सौ से अधिक एकाउंट हैंडलर तो ऐसे हैं जो पिछले एकाउंट्स में कामन रहे हैं। खुफिया तंत्र इस सच्चाई की जांच कर रहा है । गुरुवार को केन्द्र सरकार के ग्रह विभाग की ओर से केवल इतना कहा गया है कि वे इन तमाम तथ्यों और एकाउंट की छानबीन कर रहे हैं। भविष्य की छानबीन में चाहें तो तथ्य आयें चाहें जो चेहरे सामने आयें लेकिन इतना तय है कि इस आँदोलन के सूत्र अब किसानों के हाथ में नहीं रहे । इनका संचालन कहीं और है और देश विरोधी ताकतों के हाथ में चला गया । अभी कुछ चेहरों से नकाब हटा है कुछ चेहरों पर नकाब अभी बाकी है । हो सकता है कुछ चेहरे ऐसे भी हों जो कभी सामने न आ सकें लेकिन इतना तय है कि यह आँदोलन अब जिस रास्ते पर चल पड़ा है वह देश को कमजोर करने वाला है, अशांत करने वाला है और समाज के समरसता के तानेबाने को तोड़ने वाला है। इसलिए देशवासियों को सतर्क रहना होगा और आंदोलन के नाम फैलाये जाने वाले भ्रम और अफवाहों से सावधान रहना होगा।