माननीय नानाजी देशमुख : एक परिचय

श्रद्धेय नानाजी का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के परभणीं जिला के कोड़ोली गांव में 11 अक्टूबर 1916 को शरदपूर्णिमा के दिन हुआ था। इनका घर का नाम चण्डीदास देशमुख है, लेकिन घर पर इन्हें नाना कहकर पुकारते थे, इसलिए इनका नाम नानाजी पड़ गया और इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये। नानाजी के पिता का नाम अमृतराव देशमुख है। महाराष्ट्र प्रान्त में स्वयं के नाम के बाद पिता का नाम लिखते हैं। इसलिए नानाजी का वास्तविक पूरा नाम चण्डीदास अमृतराव देशमुख है। नानाजी का जन्म गरीब परिवार में हुआ था नानाजी दो भाई व दो बहनें थी। इनके पिताजी व माताजी की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। इसलिए नानाजी की शिक्षा रिश्तेदारों व सहयोगियों के सहयोग से हुई। नानाजी मैट्रिक (10वीं पास) तक वासिम (washim) नागपुर (विदर्भ) से किया। इसके बाद इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने के लिए पिलानी इन्स्टीट्यूट गये, लेकिन संघ से संपर्क हो जाने के बाद बीच में ही वापस आ गये और संघ कार्य में लग गये तथा तभी गरीबों के लिए कार्य करने का निश्चय कर लिया। श्रद्धेय नानाजी ने नाटक में भी कार्य किया है। नानाजी अच्छे कलाकार, अच्छे पेन्टर, अच्छे फोटोग्राफर तथा बहुत ही अच्छे डायरेक्टर भी है। कबड्डी के राष्ट्रीय खिलाड़ी होने के साथ-साथ फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे तथा पिलानी इंजीनियरिंग इन्स्टीट्यूट के फुटबाल टीम के कप्तान भी रहे। नानाजी को हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी व संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञान है तथा बोल भी लेते हैं।

श्रद्धेय नानाजी जब वासिम में मैट्रिक में पढ़ते थे तभी डॉ0 केशवराव बलिराम हेडगेवार जी से 1928 में परिचय हो गया डॉ0 साहब उस समय वासिम प्रवास पर गये थे तभी से नानाजी संघ से जुड़ गये और 1934 से पूर्णकालिक की तरह कार्य करने लगे। सबसे पहले नानाजी 1941 में आगरा में व फिर गोरखपुर में प्रचारक रहे तथा बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से 1977 में सांसद चुने गये तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। नानाजी ने प्रचारक जीवन मेें एक पैसे के चने लेकर, खाकर काम चलाया और कभी-कभी रात मंे दुकानों के बाहर पड़ी बेंचों पर ही सो जाते थे। नानाजी, भावरस जी देवरस, अटल जी व दीनदयाल जी दिल्ली में एक कमरे में रहकर के संघ कार्य करते थे तथा राष्ट्रधर्म पत्रिका आदि का भी संपादन करते थे और चने खाकर पेट भरते थे। नानाजी जब 80 वर्ष के हुए तब उन्होनें लिखकर के रख दिया था कि मेरी मृत्यु के बाद मेरा देहदान कर दिया जाय, यह उन्होनें अपने सभी सहयोगियों को भी बुलाकर कह दिया है और यह भी कहा था कि कहीं पर भी मेरे नाम से कुछ भी न हो और न ही कोई प्रकल्प मेरे नाम से चले। नानाजी के नाम से कहीं भी किसी भी प्रकार का बैंक में न कोई खाता है, न ही उनके नाम से जमीन व अन्य भी कुछ नहीं है।

श्रद्धेय नानाजी ने अपने राजनैतिक जीवन से ले करके आज तक जो भी किया है
यदि उस पर प्रकाश डाला जाये या उल्लेख किया जाये तो कर ही नहीं पायेगे। उन्होंने  जो कुछ भी किया अपने स्वयं के लिये नहीं किया उन्होने उपेक्षित एवं पीड़ित लोगों के लिए वही किया जो कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल के समय किया था यदि श्रद्धेय नानाजी को इस युग का महापुरूष कहा जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी। जितना उन्होने समाज के लिये किया है, शायद कोई कल्पना भी नही कर पायेगा। श्रद्धेय नानाजी ने सरकारों की अपेक्षा एवं अंगडे़बाजी से भी कभी डरे नहीं। किसी की परवार किए बिना अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते जा रहे है और सफलता भी प्राप्त की है। उसका उदाहरण है कि अभी हाल में सतना जिले के भरगवाँ गाँव को हर प्रकार के विवादों से मुक्त करा दिया और गाँव के विवाद मुक्त हो जाने पर उस गाँव के विकास मंे हर संभव सहायक बनने का श्रद्धेय नानाजी ने वादा किया।

श्रद्धेय नानाजी ने जिस भी प्रकल्प की स्थापना या शुरूआत की वे सभी प्रदूषण से मुक्त हैं। जल संकट को दूर करने के लिये किये गये उपाय की जितनी भी सराहना की जाये उतनी ही कम होगी एवं अन्नपूर्णा सेवा भोजनालय एवं स्वरूचि भोजनालय के माध्यम से लोगों को अच्छा, स्वादिष्ट भोजन कम मूल्य पर उपलब्ध कराना भी एक प्रशंसनीय कार्य है। श्रद्धेय नाना जी का जोश एवं समाज के लिये चिंतन करना, उन्हें पूरा करने का प्रयत्न देखते ही बनता है और किसी को विश्वास भी नहीं होगा कि श्रद्धेय नानाजी 90 वर्ष की उम्र में भी समाज की चिंता करते है, तथा सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान पर जुट जाते है।