महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रघुनाथ शाह

शंकर शाह गोंडवाना के राजा थे जिन्हें अंग्रेजों ने अपने पुत्र सहित १८ सितम्बर १८५८ को विप्लव भड़काने के अपराध में तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया था। ये दोनों गोंड समाज से हैं। उनके पुत्र का नाम कुंवर रघुनाथ शाह था।[1][2]

1857 के विद्रोह की ज्वाला सम्पूर्ण भारत में धधक रही थी। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने युद्ध का आह्वान किया था। इस संग्राम में रघुनाथ शाह ने अपने पिता का बढ़-चढ़कर सहयोग किया था। राजा शंकर शाह, निजाम शाह के प्रपौत्र तथा सुमेर शाह के एकमात्र पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम रघुनाथ शाह था। राजा शंकर शाह जमींदारों तथा आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे।

857 ई0 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजिमेण्ट का कमाण्डर क्लार्क बहुत क्रूर था। वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता को बहुत परेशान करता था। यह देखकर गोण्डवाना (वर्तमान जबलपुर) के राजा शंकरशाह ने उसके अत्याचारों का विरोध करने का निर्णय लिया। राजा एवं राजकुमार दोनों अच्छे कवि थे। उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी। राजा ने एक भ्रष्ट कर्मचारी गिरधारीलाल दास को निष्कासित कर दिया था। वह क्लार्क को अंग्रेजी में इन कविताओं का अर्थ समझाता था।

क्लार्क समझ गया कि राजा किसी विशाल योजना पर काम रहा है। उसने हर ओर गुप्तचर तैनात कर दिये। कुछ गुप्तचर साधु वेश में महल में जाकर सारे भेद ले आये। उन्होंने क्लार्क को बता दिया कि दो दिन बाद छावनी पर हमला होने वाला है। क्लार्क ने आक्रमण ही सबसे अच्छी सुरक्षा (offence is the best defence) वाले नियमानुसार 14 सितम्बर को राजमहल को घेर लिया। राजा की तैयारी अभी अधूरी थी, अतः बिना किसी विशेष संघर्ष के राजा शंकरशाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह बन्दी बना लिये गये।

क्लार्क उन्हें सार्वजनिक रूप से मृत्युदण्ड देकर जनता में आतंक फैलाना चाहता था। अतः 18 सितम्बर, 1858 को दोनों को अलग-अलग तोप के मुँह पर बाँध दिया गया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी प्रजा को एक-एक छन्द सुनाने चाहे। पहला छन्द राजा ने सुनाया।