क्षमा ही शक्ति है – पंकज चतुर्वेदी

लेखक मोटिवेशनल स्पीकर हैं

क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
का रहीम हरी का घट्यो, जो भृगु मारी लात।
अर्थात उद्दंडता करने वाले हमेशा छोटे कहे जाते हैं और क्षमा करने वाले ही बड़े बनते हैं। यह दोहा हमारी प्राचीन संस्कृति एवं संस्कारों का प्रतीक है।

ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु की सहिष्णुता की परीक्षा लेने के लिए उनके वक्ष पर ज़ोर से लात मारी। मगर क्षमावान भगवान ने नम्रतापूर्वक उनसे ही पूछा, “अरे! आपके पैर में चोट तो नहीं लगी? क्योंकि मेरा वक्षस्थल कठोर है और आपके चरण बहुत कोमल हैं। जब सर्व शक्तिमान प्रभु क्षमा शील हैं तो हम तो उन के आगे कुछ नहीं। मानव को प्रकृति प्रद्दत बहुत सारी शक्तियां मिलीं हैं। इन में सबसे सशक्त है ,क्षमा करने की शक्ति पर सामान्य रूप से हम सब राग-द्वेष और क्रोध के प्रति इतने आसक्त होते हैं कि क्षमा करने की सशक्ता का सदुपयोग नहीं कर बहुत से कष्ट सहते हैं।

यह इतना अविवेकपूर्ण है फिर भी अधिकांश लोग क्षमा करने में विवेक का उपयोग न कर क्रोध एवं ईर्ष्या में स्वयं की बहुत हानि कर लेते हैं। समस्त दानों में सर्वश्रेष्ठ दान क्षमा दान माना गया है। क्षमा ही वह मूल प्रवृत्ति है जो मानव और दानव में अंतर स्थापित करती है। जिसने जीवन में क्षमा को समझ लिया उसका जीवन सरल हो जाता है और जो सरल है वही सफल है। क्षमा सबल होने का पर्याय है लोग क्षमा को निर्बलता समझने की भूल करते हैं। वास्तव यही भूल जीवन में अनेकों बार शूल का कार्य करती है। क्षमा से क्रोध का विष समाप्त हो स्नेह का अमृत उत्पन्न होता है। क्रोधी एवं ईर्ष्यालु सदा नकारात्मक होगा वहीं स्नेही सदा सार्थक और सकारात्मक होगा। हम सब प्रकृति के इस विज्ञान को भलीभांति जानते हैं कि सकारात्मकता सफलता का प्रथम पग है। सकारत्मक होने से आत्म विश्वास और विश्वास दोनों में वृद्धि होती है। क्षमा में ही बुद्धि – समृद्धि का वास है।

सब का एक ही निमित्त हो, प्रसन्नता प्राप्त करना और प्रसन्नता प्रसारित करना| इस में क्षमा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है
इस सबके बीच परीक्षा की घड़ी के रूप में कई प्रकार के व्यवहारिक संकट आते हैं। तब मनुष्य नकारात्मक रुख अपनाता है या सकारात्मक रुख अपनाता है वह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति कितना क्षमाशील है। जो क्षमा साधना में परांगत है वही सही मायनों में आत्मनिर्भर, सबल, सक्षम और योग्य है |आप कल्पना कीजिए के जिस प्रकार के नैतिक और सामाजिक अपराध हमसे जाने अनजाने में हो जाते हैं यदि ईश्वर उनको क्षमा ना करें तो क्या होगा ,इसकी कल्पना से ही भी भय उत्पन्न हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि हम क्षमा प्राप्त करने की अभिलाषा तो सदा रखते हैं| किंतु हम क्षमा करने में संकोच करते हैं। जीवन की व्यवस्था में क्षमा का अपार भंडार है। परन्तु हमने इस को भंडार को स्थायी रूप से मोटे ताले से बंद कर रखा है।

हमारी प्रकृति तो किसी के खिलाफ भी शत्रुता या द्वेष का भाव नहीं रखती। इसीलिए जीवन में सबके लिए सेहत, सफलता और प्रसन्नता सर्वत्र उपलब्ध है| बशर्ते हम उस पाने के लिए प्राकृतिक नियमों का पालन करें। क्षमाशील बनने के लिए आपको क्षमा, विनम्रता और दया के भाव आपके अवचेतन में सतत रूप से प्रेषित करने पड़ेंगे। इन के आधार पर आपकी भावनाएं भी इन्हीं के अनुरूप हो जाएंगी| जब आपकी भावनाएं क्षमाशील हो जाएंगी तो आप के भाव-भंगिमा , आपका आचरण और व्यवहार भी क्षमाशील हो जाएगा। वैसे भी राग- द्वेष और क्रोध से, सिर से लेकर पैर तक के बहुत सारे रोग होने की संभावना है| क्रोध- ईर्ष्या की नकारात्मकता से अनावश्यक तनाव एवं आवेश उत्पन्न होता है। जो मस्तिष्क एवं अन्य अंगो से लेकर प्रतिरक्षा तंत्र तक को भारी नुकसान पहुचाता है। क्षमा करना भी एक तप है। जिसके लिए अभ्यास रूपी तपस्या लगती है। यदि बहुत क्रोध आ रहा है तो मन को शांत कर ले, शिथिल हो जाए, अपने आराध्य के बारे में और अपने आराध्य के प्रति आप के समर्पण के बारे में सोचें। आराध्य को सामने रखकर अपनी ओर से जिसने आपको कष्ट या क्रोध दिया है उसे क्षमा करने का मानसिक निर्णय लें। आप देखिए कि आपकी भाव- भावना दोनों बदल जाएंगे और आप स्वयं में इस प्रकार हल्का पन महसूस करेंगे जो कि क्रोध के चलते कभी संभव नहीं हो सकता। जब भी किसी को क्षमा करें तो मन से करें तभी वास्तविक शांति मिलेगी।

कभी दोबारा उनका स्मरण क्रोध में आए तो अपने आप को स्मरण दिलाएं कि आप उन्हें क्षमा कर चुके हैं। एक बात पर सदा विश्वास करें कि आज आपकी जो भी स्थिति परिस्थिति है और जो कल आप की स्थिति परिस्थिति होने वाली है वह सब आपके मन मस्तिष्क में चलने वाले विचारों के ताने बाने के आधार पर है। इस सोच से क्षमा करना सरल हो जायेगा। दूसरों को दोष देना सबसे सहज और सरल है। वस्तुतः आपकी विचार और भावनाएं ही आपका भाग्य है। अल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया। किंतु कालांतर में उन्होंने स्वयं को क्षमा करते हुए शांति के लिए और भिन्न-भिन्न
क्षेत्रों में नोबल पुरस्कार स्थापित किये। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि स्वयं को क्षमा करके अल्फ्रेड नोबेल ने समाज को एक नई दिशा दी व स्वयं को एक नई पहचान दी। हम सब भी आत्म क्षमा और अन्य को क्षमा के द्वरा सब कुछ बदल सकते हैं। बदलने का भाव रखें बदले का नहीं। यह सब कुछ नया नहीं है बस हमें इस का सतत प्रयोग करने वाले एक नए मानव का रूप लेना है। बाकी सब सरलता से हो जायेगा